देश—विदेश में प्रसिद्ध जयपुरी रजाई की डिमांड खूब है। पिंक सिटी घूमने आने वाले ट्यूरिस्ट को जयपुर का यह खास प्रॉडक्ट खूब पसंद आ रहा है। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला—2025 में भी 100 ग्राम रूई से बनी स्पेशल रजाई को लेकर खासा क्रेज रहता है। जयपुरी रजाई का बिजनेस भी काफी बढ़ गया है।
जयपुरी रजाई अपने हल्के वजन, कोमलता और गर्माहट की खासियत के कारण देश—विदेश में फेमस है। जयपुरी रजाई बनाने का काम मुख्य रूप से मंसूरी समाज का वंशानुगत व्यवसाय है। अब इस व्यवसाय में कुछ और भी लोग एवं बड़ी कंपनियां शामिल हो गई है। लेकिन परम्परागत रूप से बनी रजाई की डिमांड अलग ही है। जयपुर में कई परिवार ऐसे हैं जिनकी सात—आठ पीढ़ी इस काम से जुड़ी है। यह करीब 280 साल पुरानी विरासत है।
असली जयपुर रजाई कहां से खरीदे?
पर्यटकों और ग्राहकों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल, यहां जयपुर में कई दुकानदार ऐसे हैं जो असली जयपुर रजाई का दावा करते हैं, लेकिन वे होती नहीं है। इसलिए यह प्रॉडक्ट सोच समझकर लिया जाना चाहिए। जयपुर में जयपुरी रजाई हवामहल बाजार, जौहरी बाजार, बापू बाजार, आमेर रोड़, जोरावर सिंह गेट, आमेर में कई दुकानों और शोरूम मिलती है। ये प्रॉडक्ट ऑनलाइन भी कई साइटों पर बेचा जा रहा है लेकिन, उसके असली होने की कोई गारंटी नहीं है। सिलाई, वजन, कपड़ा और छपाई देखकर इसके असली—नकली होने का अंदाजा लगाया जा सकता है।
जयपुरी रजाई कितने की है?
यह निर्भर करता है उसमें इस्तेमाल की जा रही रूई की क्वलिटी और कपड़े पर। हाथ से कताई वाली रूई से बनी होगी, तो महंगी होगी। मशीन से रई कताई कर बनी रजाई आमतौर पर सस्ती होती है। फिर उसमें कपड़ा कौन सा लगा है? इस पर भी जयपुरी रजाई की कीमत निर्भर करती है। रजाईयां 500 से 5000 तक की रेंज में उपलब्ध है।
क्यों प्रसिद्ध है जयपुरी रजाई?
नार्मल रजाई का वजन 4-5 किग्रा तक होता है। कुछ लोगों को इस रजाई के इस्तेमाल से घुटन महसूस होती है। जयपुरी रजाई काफी light weight होती है। इसका वजन 100 ग्राम से लेकर दो किग्रा तक होता है। स्पेशल 250 ग्राम (प्रसिद्ध 'पाव रजाई') भी उपलब्ध है।
मलमल का कपड़ा: इसमें शुद्ध सूती मलमल (Mulmul) के कपड़े का उपयोग होता है, जो त्वचा के लिए बेहद मुलायम होता है और सांस (breathable) ले सकता है।
हाथ की छपाई (Hand Block Print): इन रजाईयों पर सांगानेरी, बगरू और मुगल प्रिंट की नक्काशी होती है। यह मशीन से नहीं, बल्कि कारीगरों द्वारा लकड़ी के ठप्पे (blocks) से हाथ से छापी जाती है।
रिवर्सिबल डिज़ाइन: अधिकतर जयपुरी रजाईयां दोनों तरफ से इस्तेमाल की जा सकती हैं, जिससे एक ही रजाई में आपको दो अलग-अलग डिजाइन मिलते हैं।
पतली रजाई में कैसे रुकती है सर्दी
पतली जयपुरी रजाई में ठंड कैसे रुकती है? इसका राज इसकी बनावट और प्रक्रिया में छिपा है।
धुनाई (Carding Process): यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है। कारीगर रुई को डंडों से घंटों तक पीटते हैं (जिसे धुनाई कहते हैं)। इस प्रक्रिया में रुई के रेशे-रेशे अलग हो जाते हैं और अशुद्धियां निकल जाती हैं। इससे रुई में हवा भर जाती है और वह बेहद हल्की (fluffy) हो जाती है। विज्ञान के अनुसार, रुई के रेशों में फंसी यह हवा ही 'इन्सुलेटर' (insulator) का काम करती है और शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देती।
टगाई (Tagai /Hand Stitching): रुई भरने के बाद, कारीगर हाथ से रजाई पर बारीक टांके लगाते हैं जिसे 'टगाई' कहते हैं। यह टांके मशीन की तरह सीधे नहीं होते, बल्कि एक पैटर्न में होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि धुनी हुई रुई एक जगह इकट्ठी न हो और पूरी रजाई में एक समान फैले रहे।
शुद्ध कपास: इसमें सिंथेटिक फाइबर के बजाय 100% शुद्ध कपास का उपयोग होता है, जो सिंथेटिक फाइबर की तुलना में गर्मी को बेहतर तरीके से सोखता है।

